तुम लौटो तो लौटे
बसंत का मौसम
मान मनुहार का मौसम
लौटें रौनकें, रतजगे और
बज उठे फिर उदास पड़ा सरोद
तुम से कितना कुछ कहना है
तुम से कितना कुछ सुनना है
तुम लौटो तो लौटे
पहचानें , उधड़े से कुछ रिश्ते
कुछ हक अदा करें हम तुम
कुछ लड़ें और कुछ झगड़े भी
पुराने नाम दोहराए थोड़ा प्यार जताएं
ये जो नई नई कोपलें आई है
पीढियों के वृक्ष पर
उनसे कुछ परिचय हो अपनापा हो
तुम लौटो तो सही
अपने घर अपने देस
एक पल को भी।
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
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