मैं अपनी कामयाबियों पर इतराता रहा
माँ मेरे लिए दुआएं पढ़ती रही
धूप मुझे छूने से पहले
उसके आँचल से गुज़रती रही
मैं व्यस्त रहा सदा दुनियावी झमेलों में
माँ मुझे बुलाती रही
अब जब घर की तुलसी पर दीप नहीं है
तब जाना माँ के बिन घर घर नहीं है
मनीषा
19.12.2017
माँ मेरे लिए दुआएं पढ़ती रही
धूप मुझे छूने से पहले
उसके आँचल से गुज़रती रही
मैं व्यस्त रहा सदा दुनियावी झमेलों में
माँ मुझे बुलाती रही
अब जब घर की तुलसी पर दीप नहीं है
तब जाना माँ के बिन घर घर नहीं है
मनीषा
19.12.2017
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