मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
Pages
Home
Sunday, July 26, 2015
जो मेरा है
जो मुझमे है मेरा है
क्या उसे याद करूँ
भूलूँ भी तो कैसे
खुद स्वयं को भी क्या भूला
या याद किया जा सकता है
मनीषा
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
View mobile version
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment