मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Friday, June 10, 2011
मियाँ हुसैन
जिन्होने किसी लकीर को नही माना, ना समाज की रवायतो को जाना
बहुत कम होते है ऐसे यायावर जो अपनी ही शर्तो पर जीते है
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