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Monday, December 31, 2012

हे नारी ! तू पहचान

जीवन साथी ने तज दी  तो सीता कहलाई
दरबारों में लुटी तो द्रौपदी कहलाई 
किसी ने चुराया किसी ने दांव पर हराया 
पर मत भूल तू 
लिया जब रौद्र रूप तो दुर्गा काली कहलाई 
हर सीता को मर्यादा पुरोषोत्तम राम नहीं मिलता 
हर द्रौपदी को कृष्ण का चीर नही मिलता 
पर मत भूल तू 
किसी पुरुष को सिंह सवारी का मान नहीं मिलता 
तू  स्रष्टि तू ही काल 
तू जग जननी तू ही विनाश 
तूने ही पोसा है पुरुष का पुरुषार्थ 
पर मत भूल 
तू एक पल को बंद कर ले मुट्ठी 
रुक जाएगी धरती, रुक जाएगी  उस सृष्टा की सृष्टि 
जब तक भूली है तू अपनी ताकत 
तब तक ही तेरा विनाश 
हे नारी ! तू  पहचान 
हे नारी ! तू  पहचान 

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