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Wednesday, December 5, 2012

प्रांगण-Bal Bharti Public school Alumni night


मैं लौट रही हूँ अपने प्रांगण  में 
बरसों  बाद एक आस लिए 
कूदते फुदकते वो लम्हे ले कर 
लौट  आयी है वो मृदु स्मृतियाँ भी 
मिलेंगे शायद वो मीत वही
अपने बालो में अनुभव की सफेदी लिए 
कुछ परिचित, कुछ अपरिचित 
कुछ अपरिचित हो कर भी परिचित 
मन में बस एक आस लिए 
जी लेने को पुनः वो लम्हे 
जिनमे घिरी रहती हैं मेरी  शाम अक्सर 
बहुत समय बाद ,हमजोलियों की टोली होगी 
हँसी और ठहाके होंगे 
भोली शरारतों की  स्मृतियाँ 
फिर मन को गुदगुदा जाएँगी 
पुरानी गप्पे फिर दोहराई  जाएंगी 
एक दुसरे के राज़, कई हमजोली  खोलेंगे 
बहुत कुछ हम एकदूसरे से बिना बोले ,बोलेंगे 
वो शाम जानती हूँ मुझे मुझसे मिला जाएगी 
इसलिए  एक बार फिर अतीत के पन्ने पलटने को 
 मन में एक उमंग ,पाँव  में एक थिरकन लिए 
लौट रहीं हूँ आज मैं अपने प्रांगण में 

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