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Wednesday, January 15, 2025

अपने अपने द्वीप पर

 मैं एक द्वीप पर हूं

एक दायरे के भीतर
सुरक्षित
महफूज़
मुझ तक नहीं आतीं
कोई चीख पुकार।।
आस पास बहुत धुंध है
व्यवहार की परंपरा की
इसलिए मुझ तक नहीं
आते लहूलुहान बच्चों की
अर्धनग्न औरतों चेहरे ।।
मेरे आस पास शोर बहुत है
आरतियां हैं गुनगुनाते नग्मे हैं
इसलिए मुझ तक नहीं आता
रूदन और गिड़गिड़ाना
आरतों और बच्चों का ।।
मेरे आस पास है
रसोई की गंध है पकवानों की खुशबू
इसलिए मुझ तक नहीं आती
जलते अंगो और सड़ती लाशों
की दुर्गंध।।
मैं अपने द्वीप पर सुरक्षित हूं
महफूज हूं।।
मेरे पास बहुत कुछ नहीं हैं
जो मुझे विचलित करता है।।
और मैं आवाज़ भी उठाती हूं
अपने लिए मांगती हूं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
आस पास घूमने की आजादी
लेकिन मेरी इस चुप ने
मुझे दिया भी बहुत
एक छत, एक घर
वक्त पर खाना पूरा परिवार
थोड़ा सुख थोड़ा प्यार।।
और मुझे मिला है
घर संसार
एक अदद बहुत बड़ा सा कलर टीवी है
जिस पर आती हैं खबरें
युद्ध की दंगाइयों की
और
मुझे स्वतंत्रता है
कि डर से उसे बंद कर दूं।
कस के आंखे भींच लूं
मुंह में कपड़ा ठूंस लूं
और कानों में रूई भर लूं
क्योंकि मैं जानती हूं
मैं अपने द्वीप पर सुरक्षित हूं
महफूज़ हूं।।
शायद यही होता है
सब अपने अपने द्वीप पर
बैठें हैं
सुरक्षित महफूज़।।
थोड़े थोड़े गुलाम लेकिन
महफूज़
अपने अपने द्वीप पर।।
मनीषा वर्मा

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