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Wednesday, January 15, 2025

कुछ दिन

 कुछ दिन बहुत मुश्किल होते हैं

बरसों तक जैसे क्षण वहीं थमे हों।।
एक काली सी अंधेरी रात
बरसों बरस जैसे उसी आसमां
पर ठहरी रहती है।
सूरज उगता है मद्धम सा
दिन गुजरता नहीं रात गुजरती नहीं।।
एक यंत्र सा जीवन पूरे साल जो चलता रहा
बस उस एक दिन उस एक पल
बस वहीं ठहर जाता है
जैसे ये बीस पच्चीस साल के दिन और रात
आए ही नहीं जिए ही नहीं
इनमें आए सुख और दुख के पल
किसी और ने जिए हमारे लिए
हम तो वहीं हैं उसी पल में रुके हुए से
वहीं पुकारते तुम्हे आंखे खोलने की
कुछ फिर से बोलने की याचना करते हुए
तुम्हारे खोए हुए बच्चे
इस दुनिया की भीड़ में तुम्हें खोजते ढूंढते
बस वहीं तुम्हारे सिरहाने आवाक बैठे हुए।।
मनीषा वर्मा

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