कभी अकेले बैठो तो
ध्यान से देखना आस पास
ये सुकून ये शांति बस
तभी तलक है जब तक
किसी के भीतर की नफरत
पर फैल नहीं जाती।
तुम हो तो मालिक सारे जहान के
पर मोहताज तो हो
हुकूमतों की साजिशों
और सदियों की राजनीति के
तुम्हारे कांधे पर चढ़ कर
नफरत का पिचाश
कहानी कह रहा है
और तुम चुप हो सुनते हुए
सच और झूठ सब
तुम्हारे बोलने पर ही तो ये
जहां से आया है वहीं जाएगा
वरना सिर चढ़ कर कानों में
केवल जहर ही उगलेगा
और स्वाह कर देगा
तुम्हारा शहर तुम्हारा मकान
तुम्हारा वंश
और तुम गिरी मीनारों के मलबों में
अपनों की कब्र
बनाते रह जाओगे।
मनीषा वर्मा
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