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माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Wednesday, January 15, 2025
थोड़ा सा पागल हो जाना स्वीकार मुझे
थोड़ा सा पागल हो जाना
स्वीकार मुझे
तुम बिन जीना कितना दुश्वार मुझे।।
बिना पैर के चलती हूं
बिना
हंसी के हंसती हूं
तुम बिन कहां कोई व्यवहार मुझे ।।
ना आसमां कोई सिर पर मेरे
ना पैरों तले ज़मीन मिले
तुम बिन त्रिशंकु सी हर ठौर मुझे ।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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