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Wednesday, January 15, 2025

अंतिम विदाई अंतिम प्रणाम

 अंतिम विदाई अंतिम प्रणाम

आज फिर मैं जो सफर पर चला
किसी ने लौट कर आने को ना कहा
ना माथा चूमा ना दोनो हाथ उठा आशीष भरा
किसी ने आंचल से नाम आंखे पोछते विदा ना किया
आज फिर जो मैं सफर पर चला।।
ना हाथ में डब्बा था नमकीन भरा
ना घी चुपड़ी रोटी और आचार
ना थी घर की वो पुरानी नेमते
थोड़ी सी रोली चावल की गोदी
और झूठमूठ के वादे और
वो सच्ची कसमें और सख़्त हिदायते
आज जो फिर मैं सफर पर चला।।
ना लौट कर आने को कहने वाले पिता थे
ना ठीक से रहना कहती अम्मा
ना फिर आने को कहती भाभी
ना पीठ थपथपाते भईया
था बस एक सूना द्वार
जर्जर होती जा रही दीवार से झड़ता पलास्तर
और जंग खाता चुप सा जंगला
आज जो फिर मैं सफर पर चला।।
मनीषा वर्मा

3 comments:

  1. ओह....
    मार्मिक रचना

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  2. अत्यंत भावपूर्ण ,मार्मिक अभिव्यक्ति। जीवन का कटु सत्य इससे बढ़कर तो कुछ नहीं।
    सस्नेह।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना गुरुवार १६ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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