तेरे साथ सुबह ने मेरा दिन महका दिया
रात आई तो तेरी बातों ने जहां भुला दिया
रात आई तो तेरी बातों ने जहां भुला दिया
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ता उम्र उसके मुन्तज़िर गुज़ार दी
जो शख़्स दफन था सीने में
वो मेरी गलियों में भटक रहा था
मैं ढूंढ रही थी जिसको सारे शहर में
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जो मिल जाए वो ज़ुस्तजू क्या
जो पूरी हो जाए वो ख्वाहिश क्या
एक नज़र में जो न बदल दे दुनिया
है वो आतिश-ए -इश्क़ क्या
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रहनुमा समझ थामा था जिनका हाथ
वो भी दामन बचा बचा कर निकले
जिनके लिए रोए उम्र भर
वो ही मेरे हाल से बेखबर निकले
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ख्वाब सा कोई छू कर
करीब से ऐसे गुज़र गया
न सुबह हुई न शाम हुई
बस दिन इंतज़ार में ढल गया
करीब से ऐसे गुज़र गया
न सुबह हुई न शाम हुई
बस दिन इंतज़ार में ढल गया
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आज कोई नहीं है साथ मेरे
फिर भी कारवां लिए चलता हूँ
इक तू है और बस ख्वाब तेरे
जिसे तलाशता गली गली फिरता हूँ
आज कोई नहीं है साथ मेरे
फिर भी कारवां लिए चलता हूँ
इक तू है और बस ख्वाब तेरे
जिसे तलाशता गली गली फिरता हूँ
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तुम मेरे हाथों की लकीरों में पीरों को दिख जाते हो
हर रोज़ आरती में दुआ बन के लब पर उतर जाते हो
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खुदा के बस में
हर रोज़ आरती में दुआ बन के लब पर उतर जाते हो
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खुदा के बस में
बस इतना ही था
की मुझसे अलग तुझे
रख दिया उम्र भर के लिए
इस तड़प इस दीवानगी
इस आशिक़ी के मिज़ाज़ को
वो भी कम ही तौल बैठा
मनीषा
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