मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Sunday, April 20, 2014
ख्वाब सा कोई
ख्वाब सा कोई छू कर
करीब से ऐसे गुज़र गया
न सुबह हुई न शाम हुई
बस दिन इंतज़ार में ढल गया
मनीषा
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