मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
Pages
Home
Friday, February 21, 2014
एक रिश्ता
तू है और मैं हूँ
अपनी अपनी परिधि में बंधे हुए
किसी उल्का की तरह
पास पास से गुज़रते हुए
जो है सो है
एक मधुर सा संबंध
धरती और चाँद सा
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment