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Wednesday, February 26, 2014

मैं तैयार नही हूँ

मेरे पास भी एक ह्रदय है
शायद तुमसे कहीं अधिक कोमल
कहीं अधिक भावुक
कैसे कर लूं इसे पत्थर
क्षमा करना ऐसा न कर पाऊंगी
और शायद जीवन में
भीतर ही भीतर पाषाण ढोने के लिए
आतुर मेरी छाती भी नही है
भाव विहीन सपंदन हीन
जड़ सा ही बन कर
जीना था जब जीवन
तो मानव नही
वृक्ष सा उगना था
तुम्हे कहीं  
पर पवन के थपेड़ों  से हिल तो वह भी लेते हैं
मनमीत
मैं तो चाहती हूँ भावों भरा समुद्र
और अठखेलियाँ  करता क्षितिज
अभी बाँधने को स्वयं की उमंगे
मैं इच्छुक  नही हूँ
निर्विकार निर्वाण के लिए
मैं आतुर नहीं  हूँ
मुझे जीवन जीना है बार बार
तुम्हारे मोक्ष के लिए मैं लालयित नहीं हूँ
मुझे उड़ने दो
मेरे ही विस्तृत आकाश में
विचरने दो धरा की अथल गहराई में
डूबने दो भवसागर की गहराई में
वैतरणी पार करने को मैं उत्सुक नही हूँ
लगने दो मुझे फिर फिर ठोकर
पर उस से पहले रुकने को
संभल जाने  को  मैं तैयार नही हूँ
मनीषा


                                                          

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