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Thursday, January 9, 2014

उसका घर

उसके छोटे से घर में  छोटे छोटे पहिए लगे थे
चमकती आँखों में कितने सपने सजे थे
धूप  से चेहरा लाल था
हाल बहुत बेहाल था
पर उमंगों  में वह खुश था
कितना प्यारा था
स्वप्न  सा सुंदर उसका घर था
गुड़िया का  सुंदर घर
छोटी छोटी खिड़कियों पर
चुनरी के पर्दे वाला घर
उसका मन उमड़ आया
उसने लपक कर डोर को उठाया
और दौड़ चला वह  सड़क पर
पीछे पीछे चला डगमग डगमग उसका छोटा सा घर
तभी खा ठोकर बिखरा उसका गत्ते की  खिड़कियों वाला घर
बिखरा ताश के पत्तों सा वह  प्यारा घर
बचपन हुआ परेशां  रुआँसा ढुलके आँसू  गालों  पर
बदली तभी छा गई , सूरज को घटा खा गई
भीगता वह  आया अपने घर
माँ  को घर बुहारते पाया
कमरे में घुटनों  तक पानी पाया
टूटी छत रिस रही थी, छोटी बहन पालने में रो रही थी
उसके रोते चेहरे को देखा , हाथ में टूटी डोरी को देखा
माँ  ने समझा बिन पूछे ही
छोटी को चुप कराते वो बोली
बेटा  स्वप्न  हमेशा टूटा ही करते हैं
बहादुर बच्चे नहीं  रोया करते हैं
अपना संसार यही है
घर द्वार यही है
टूटे छप्पर  वाला टूटा फूटा घर
कल आने दे फिर चिपकाएंगे
तेरा सपने जैसा घर
आज तू टपकती इस छत के नीचे
ज़रा बाल्टी तो रख
चल बेटा  आँसू  पोंछ
ज़रा  माँ  की मदद तो कर
मनीषा

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