मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Thursday, January 9, 2014
दर्द
मेरी नाराज़गी ज़माने से नही
तेरी एक चुप से है
गैरों से तो उम्मीद ही क्या थी
ये दर्द तेरी ठोकर से है
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