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Monday, January 20, 2014

तुम और मैं

मुंडेरों के
इस पार , उस पार
तुम और मैं
पारदर्शी दीवार से
झांकते मिलते
पर लकीरों के आऱ  पार
रिश्तों की बुनियादें
लकीरें माप कर खींची जाती हैं
एक दायरे में नींव खोदकर
घरौंदे  बनाने पड़ते हैं
रिश्तों को खुला आकाश
क्यों नही दे देते
असीम से असीम तक
हरी धरती पर पीले फूलों सा पसरा हुआ 

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