तुम छूटीं तो जग छूटा।
जो था अपना हुआ सब पराया।
जग भर घूमी,
अपना, एक, आंगन ना पाया
तुम छूटीं तो मेरी धूरी छूटी,
किसी ठौर ठिकाना ना पाया।
ना पसरा फिर कोई आंचर
ना किसी ने अंक लगाया
आशीष मिले प्यार मिला
तुम सा दुलार बस नहीं पाया
तुम छूटीं तो देहरी छूटी
किसी द्वार फिर ना शीश नवाया।
तुम छूटीं तो जग छूटा
जो था अपना हुआ सब पराया।
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
मर्म स्पर्शी रचना
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी सृजन!
ReplyDeleteDo you have this pdf available...for book 'Rani Madan Amar'...?
ReplyDeleteइसकी pdf mil gayee Google par sanyong wash, soch rahi hun ek blog par daal dun
Haan link bhejiyega
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