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Monday, January 30, 2023

लाल धब्बे

 हिंसा और अहिंसा एक ही क्षण में 

एक दूसरे से ऐसे बंध गए,

ज़िक्र एक का तो बात दूसरे की भी उठे।

जैसे रात और दिन 

जिसने रात की स्याही देखी हो

उसे दिन के उजाले आंखों में चुभते हैं

और आंखे मूंद कर वो फिर एक बार 

अंधेरों में अपने खो जाता है।

उन अंधेरों में सुकून है

अंधेरे महफूज़ हैं

दिन में सच दिखता है और 

सफेद चादर पर पड़े लाल धब्बों का 

सच अब कौन देखना चाहता भी है?


मनीषा वर्मा 


#गुफ़्तगू

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