मां से एक डोर सी बंधी रहती है
कहीं भी उड़ लें वापिस
घर लौट जाने की बेचैनी बनी रहती है।
छुट्टियों की आस रहती है
आंगन की याद बनी रहती है
छोटे बड़े सबकी खबर मिलती रहती है
अड़ोस पड़ोस की गप्प पता रहती हैं
मां से एक डोर सी बंधी रहती है
कहीं भी उड़ लें वापिस
घर लौट जाने की बेचैनी बनी रहती है।
मुलाकातों का मकसद सा रहता है
फ़ोन करने उठाने का नियम सा बना रहता है।
बाबूजी से शिकायत सी बनी रहती है
बटुए भरे भी हों पर मां से मांगने की ज़रूरत बनी रहती है
मां से एक डोर सी बंधी रहती है
कहीं भी उड़ लें वापिस
घर लौट जाने की बेचैनी बनी रहती है।
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
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