तुम कितना खुश होती
बस यही सोच कर दिल भर आया।
कभी सोचा तुम इस पर ज़रूर डांटती
और फिर दिल भर आया।
ना तुम नहीं ऐसा करती
अरे कभी नहीं मानती मेरी
बस यही सोच कर दिल भर आया ।
मुझे तो आज जरूर डांटती,
अभी होती तो जरूर समझाती
और फिर मेरा दिल भर आया।
तुम से पूछ लेती सलाह कर लेती,
यह बात तो तुम्हीं से कह सकती थी
हर अनकही बात पर दिल भर आया।
आज ज़रा सा तुम मेरा सिर सहला देती
मेरी दुखते मन को बहला देती
बस यही सोच कर मन भर आया।
मेरी खुशी में तुम इतराती
मेरे दुःख से दुखी हो जाती
तुम होती तो त्योहार होते
कुछ ना कुछ भाई भाभी से मान मनुहार होते
बस आज यही सोच कर मन भर आया।
मनीषा वर्मा
गुफ्तगू
20.11.2000
No comments:
Post a Comment