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Saturday, September 3, 2022

तेरे जाने के बाद

 कभी कभी झांक लेती हूं झरोखों से 

अब हर आहट पर पर्दा, कुछ और सरका लेती हूं ।

कर देती हूं मजबूती से दरवाजे बंद,

कि तेरे जाने के बाद, भीतर आने की इजाज़त 

अब किसी को नहीं देती हूं।


खुल के नहीं हंसती है अब धूप, चौहद्दी पर

अंगूर की बेल अब नहीं फलती है।

हाथों से कस के बांध लेती हूं केश

कोई घटा अब कहीं नहीं बरसती है ।

कि तेरे जाने के बाद , कोई पदचाप

मन की इस देहरी पर नहीं ठहरती है।


एक सन्नाटा सा पसरा रहता है घर आंगन पर 

सूरज चांद अब नहीं उतरते हैं ।

आरती का दिया उदास पड़ा है तुलसी के नीचे,

कि तेरे जाने के बाद, कोई लौ

उम्मीद की इन आंखों में नहीं जलती है ।


मनीषा वर्मा


#गुफ़्तगू

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