चल बटोही, पथ प्रतीक्षा रत है
समेट ले बिखरे अर्थ,
और चल, पथ प्रतीक्षा रत है ।।
कम नहीं होती
पथ पर, क्लांत धूप ।
हर पड़ाव से बाँध ले थोड़ी छाँव
और चल,
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है ।।
मंज़िल कोई नहीं तेरी,
कदमों से लिपटी है बस
अनुभव की कोरी धूल।
तू साथ ले चल सर्व कंटक फूल,
और चल,
चल बटोही, पथ प्रतीक्षा रत है ।।
सृष्टि के प्रथम अहसास से
अंतिम श:वास तक,
चलना ही तो है जीवन ।
धर तू सिर पर संबंधो की गठरी
और चल,
चल बटोही, पथ प्रतीक्षा रत है ।।
निश्छल, निश्चिन्त तू चल,
गंतव्य कोई नही तेरा
कर्म पथ ही बस है प्रशस्त,
सांसो की अंतिम माला तक
चिता की अंतिम ज्वाला तक
तुझे चलना है ।
तू चल,
चल बटोही, पथ प्रतीक्षा रत है।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
पथ प्रतीक्षारत है ..... बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवाह सुंदर भावों से सजी बेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर! "बच्चन जी की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती "
ReplyDeleteकी याद दिलाती रचना।।
अप्रतिम।
यह तो बहुत बड़ी प्रशंसा कर दी आपने। धन्यवाद जो इस लायक समझा
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