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Wednesday, September 17, 2014

चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है

चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है
समेट ले बिखरे अर्थ
और चल पथ प्रतीक्षा रत है
कम नहीं  होती
पथ पर क्लांत धूप
हर पड़ाव से बाँध ले थोड़ी छाँव
और चल
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है

मंज़िल कोई नहीं  तेरी
कदमों  से लिपटी है बस
अनुभव की कोरी धूल
तू साथ ले चल सर्व कंटक फूल
और चल
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है

सृष्टि के प्रथम अहसास से
अंतिम श:वास  तक
चलना ही तो है जीवन
धर तू सिर  पर संबंधो की गठरी
और चल
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है

निश्छल निश्चिन्त तू चल
गंतव्य कोई नही तेरा
कर्म पथ ही बस  है प्रशस्त
सांसो की  अंतिम माला तक
चिता की अंतिम ज्वाला तक
तुझे चलना है
तू चल
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है
मनीषा 

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