कितनी नफरतें बो रहे हैं
कौन सी फसल काटेंगे ?
वे बेनाम लोग
वेश बदल बदल कर
इस ज़मीं पर गिरा हुआ
सिर्फ लहू मांगेंगे।।
चीख चीख कर
मचा देंगे ये कोहराम
तुमसे सिर्फ तुम्हारी
चुप्पी मांगेंगे ।।
इनके हाथों में हैं
खंजर और दारातियां
तुम्हारे सीने में
यह डर उतारेंगे।।
कर देंगे हवा ज़हरीली
पानी में विष मिला देंगे
तुमसे यह सिर्फ
झुके सिर मांगेंगे।।
दाम दे कर खरीद लेंगे
वो सारे नामानिगार
वो भर भर कर पुलिंदे
झूठ बाँचेंगे।।
उजाड़ कर तुम्हारे खेत
और तुम्हारी बस्तियां
तुमसे ही तुम्हारी
पहचान मांगेंगे
तुम इन आंधियों
के बीच दीप सा जलना
तोड़ कर चुप्पी
प्रेम और प्रीत लिखना।।
उठा कर शीश
अपने डर से मिलना
अपनी हिम्मत
अपने लहू से
अपनी वर्जना लिखना।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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