मैं कुछ देर आंखे बंद कर के तुम्हें सोचना चाहती हूं
मन ही मन मुस्काते कुछ गुनगुनाना चाहती हूं
खिड़की से जो चांद नज़र नहीं आता
उसी की चांदनी में तुम्हें पाना चाहती हूं
कभी तुमसे रूठना कभी तुम पर इतराना चाहती हूं
यह हमारे बीच आए तहज़ीबो और दायरों के फासले
मिटाना चाहती हूँ
बस कुछ देर आँखें मूंदने से पहले
एक बार फिर तुम्हें तुम ही से चुराना चाहती हूँ
मैं कुछ देर तुम्हें सोचना चाहती हूं।।
यह एक पल इतना मुश्किल होगा कभी
इस बात पर गौर करना चाहती हूं
इक उम्र में बस यही था मेरा काम
दिन रात बस तुम्हें ले कर ओढ़ना बिछाना
अपनी हथेलियों पर तुम्हारा नाम लिख कर
बंद मुट्ठी में तुम्हें संग साथ ले आना
आज बस उसी एक पल में लौटना चाहती हूँ
बस कुछ देर आँखें मूंदने से पहले
एक बार तुम्हें सोचना चाहती हूँ
तुम्हारे और मेरे नाम के वो दो अक्षर
सहेजकर बस एक बार फिर पुकारना चाहती हूं।
मैं कुछ देर तुम्हें सोचना चाहती हूं।।
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
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