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Monday, December 22, 2025

मैं कुछ देर आंखे बंद कर के तुम्हें सोचना चाहती हूं

 मैं कुछ देर आंखे बंद कर के तुम्हें सोचना चाहती हूं 

मन ही मन मुस्काते कुछ गुनगुनाना चाहती हूं 

खिड़की से जो चांद नज़र नहीं आता

उसी की चांदनी में तुम्हें पाना चाहती हूं

कभी तुमसे रूठना कभी तुम पर इतराना चाहती हूं

 यह हमारे बीच आए तहज़ीबो और दायरों के फासले 

मिटाना चाहती हूँ

बस कुछ देर आँखें मूंदने से पहले 

एक बार फिर तुम्हें तुम ही से चुराना चाहती हूँ

मैं कुछ देर तुम्हें सोचना चाहती हूं।।

यह एक पल इतना मुश्किल होगा कभी

इस बात पर गौर करना चाहती हूं

इक उम्र में बस यही था मेरा काम

दिन रात बस तुम्हें ले कर ओढ़ना बिछाना

अपनी हथेलियों पर तुम्हारा नाम लिख कर 

बंद मुट्ठी में तुम्हें संग साथ ले आना 

आज बस उसी एक पल में लौटना चाहती हूँ 

बस कुछ देर आँखें मूंदने से पहले 

एक बार तुम्हें सोचना चाहती हूँ 

तुम्हारे  और मेरे नाम के वो दो अक्षर 

सहेजकर बस एक बार फिर पुकारना चाहती हूं।

मैं कुछ देर तुम्हें सोचना चाहती हूं।।

मनीषा वर्मा 

#गुफ्तगू


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