मेरी कूची के सब रंग फीके
मेरे गीतों के बोल अधूरे
हर क्षण हर पल मिलती खुशी अधूरी
तुम से ये कैसी जन्म जन्म की दूरी।।
काल के बंधन की यह कैसी मजबूरी
मन को मिलता ना कोई दिलासा
जीवन अब कोई ठौर ना पाता
तुम से ये कैसी जन्म जन्म की दूरी।।
धर्म ग्रंथ सब देते झूठा दिलासा
कहते है जन्म जन्म का नाता
नादान मन यह समझ ना पाता
दिन दिन कटता सूना सूना
रात मिट्टी मिट्टी हो जाती
मेरी हर मुस्कान रह जाती अधूरी
तुम से यह कैसी जन्म जन्म की दूरी।।
सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर
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