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Thursday, November 27, 2025

वो एक पल था

 वो एक पल था

सभी दिनों से अधिक भारी
वक्त कुछ रुका रुका सा था
समय की गति थम सी गई थी
सांसों की लय टूट रही थी
जीवन की डोर छूट सी रही थी।।
बहुत लंबा दिन था
बहुत गहरी रात थी
ना मशीनों का शोर था
ना आसपास कोई हलचल
एक पूर्णविराम सा हो जैसे
लग रहा किसी कथा के अंत में ।।
वो एक पल बस पूरे जीवन पर
भारी है
समय वहीं आज भी रुका सा है
इन राहों पर मेरा साया जुदा सा है
मेरी कहानी का एक पन्ना कोरा सा है
कैसे इति श्री लिखूं जीवन के महाकाव्य पर
इसका एक सिरा अधूरा सा है।।
मनीषा वर्मा

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