माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
कभी कहीं लौटने के रास्ते गुम हो जाते हैं
कहीं कभी लौटने के लिए कुछ नहीं होता।।
कभी बन जाते हैं अनजाने भी हमसफर
कभी कोई रहनुमा ही नहीं होता।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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