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Thursday, February 20, 2025

मुसाफिर रे!

 मुसाफिर रे !यह जग रैन बसेरा कौन जाने कहां तेरा ठिकाना ?

बांध ले अपने सपनों की गठरी हर पल आना जाना

छूटे बंधु छूटे अपने कौन जाने क्या रहा अपना क्या पराया 

मुसाफिर रे कहां तेरा ठिकाना 

मनीषा वर्मा

#गुफ्तगू

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