मुसाफिर रे !यह जग रैन बसेरा कौन जाने कहां तेरा ठिकाना ?
बांध ले अपने सपनों की गठरी हर पल आना जाना
छूटे बंधु छूटे अपने कौन जाने क्या रहा अपना क्या पराया
मुसाफिर रे कहां तेरा ठिकाना
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
मुसाफिर रे !यह जग रैन बसेरा कौन जाने कहां तेरा ठिकाना ?
बांध ले अपने सपनों की गठरी हर पल आना जाना
छूटे बंधु छूटे अपने कौन जाने क्या रहा अपना क्या पराया
मुसाफिर रे कहां तेरा ठिकाना
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
कभी कहीं लौटने के रास्ते गुम हो जाते हैं
कहीं कभी लौटने के लिए कुछ नहीं होता।।
कभी बन जाते हैं अनजाने भी हमसफर
कभी कोई रहनुमा ही नहीं होता।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
तुम खुद को संभालो हम तो संभल ही जाएंगे।
ज़ख्म जितने भी हों गहरे वक्त के साथ भर ही जाएंगे।।
ये ज़ुल्फ लहराई भी थी गश खाई भी थी
शोखियां नज़रों की ना कभी समझे तुम ना हम कभी कह सके।।
तुम खुद को संभालो हम तो संभल ही जाएंगे।
ज़ख्म जितने भी हों गहरे वक्त के साथ भर ही जाएंगे।।
मजबूरियां थीं जमाने की परेशानियां भी थीं
जो चुप तुम लगा गए और हम भी वहीं मुरझा गए।।
तुम खुद को संभालो हम तो संभल ही जाएंगे।
ज़ख्म जितने भी हों गहरे वक्त के साथ भर ही जाएंगे।।
आंखो का समंदर उमड़ा भी था इन पलकों पर आ कर ठहरा भी था
हाथ मेंहदी में तुम्हारा नाम हम लिखा ना सके
जो दिल में था तुम्हे ही बता ना सके ।।
तुम खुद को संभालो हम तो संभल ही जाएंगे।
ज़ख्म जितने भी हों गहरे वक्त के साथ भर ही जाएंगे।।
महफिलों में गाते फिरते हैं तुम्हारे ही किस्से
फिर ना कहना हमने बताया ही ना था
प्यार था कितना ये जताया ही ना था ।।
तुम खुद को संभालो हम तो संभल ही जाएंगे।
ज़ख्म जितने भी हों गहरे वक्त के साथ भर ही जाएंगे।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू