मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Sunday, August 31, 2014
उसने चाह कर मुझे
उसने चाह कर मुझे, ये कैसी सज़ा अता कर दी
बना कर अपनी जां , मुझे मौत अता कर दी
मनीषा
हैरान हूँ उसकी ख़ामोशी पर
इंतज़ार सैलाब का करती हूँ
रुक गए जो पलकों तक आ कर
इंतज़ार उन अश्कों का करती हूँ
मनीषा
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