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Thursday, August 21, 2014

मेरे भीतर अब प्यार नहीं है

मेरे भीतर अब प्यार नहीं है 
सपनो का वो मृदु संसार नहीं है 

आँखों में वो उड़ान नहीं है 
पलको पर उजालों का वास नहीं है 

होंठों पर सहज मुस्कान नहीं है 
मन में वो भोला विश्वास नहीं है 

कदमों में उमंग भरी ताल नही है 
कंठ का वो मृदु गान नही है

विश्वास का कहीं आधार नही है
समर्पण का वो भाव नही है

तुम्हे देने को कान्हा कुछ मेरे पास नहीं  है 
राधा सा प्यार मीरा  का भाव नही है 

तुम पर मेरा अधिकार नही है 
अर्द्धांगिनी कहलाने का वो मान नही है 

मनीषा

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