तुम मेरे बचपन के मीत
जैसे भूला हुआ कोई गीत
अनमोल धरोहर जैसे मिल जाती है
तुम्हारे संग झूले की वो पींगे याद आती हैं
दुनिया में भटक जो बातें खो गई थी
खुद को ही मैं जाने कब से भूल गई थी
पन्नों में दबे फूलों से जब डायरी कभी मेरी महक जाती है
तुम्हारे संग मुझे, मेरे परिचय की याद आती है
अपने चेहरे पर जाने कितने मुखौटे ओढ़े
बरसों बरस में जाने कितने स्वप्न भूले
थके राही को जैसे अमराइयाँ मिल जाती हैं
तुम्हारे संग वही हँसी दिल में उतर जाती है
मनीषा
जैसे भूला हुआ कोई गीत
अनमोल धरोहर जैसे मिल जाती है
तुम्हारे संग झूले की वो पींगे याद आती हैं
दुनिया में भटक जो बातें खो गई थी
खुद को ही मैं जाने कब से भूल गई थी
पन्नों में दबे फूलों से जब डायरी कभी मेरी महक जाती है
तुम्हारे संग मुझे, मेरे परिचय की याद आती है
अपने चेहरे पर जाने कितने मुखौटे ओढ़े
बरसों बरस में जाने कितने स्वप्न भूले
थके राही को जैसे अमराइयाँ मिल जाती हैं
तुम्हारे संग वही हँसी दिल में उतर जाती है
मनीषा
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