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Sunday, September 17, 2023

अंतिम विदाई अंतिम प्रणाम

आज फिर मैं जो सफर पर चला

किसी ने लौट कर आने को ना कहा

ना माथा चूमा ना दोनो हाथ उठा आशीष भरा

किसी ने आंचल से नाम आंखे पोछते विदा ना किया

आज फिर जो मैं सफर पर चला।।


ना हाथ में डब्बा था नमकीन भरा 

ना घी चुपड़ी रोटी और आचार 

ना थी घर की वो पुरानी नेमते

थोड़ी सी रोली चावल की गोदी

और झूठमूठ के वादे और 

वो सच्ची कसमें और सख़्त हिदायते

आज जो फिर मैं सफर पर चला।।


ना लौट कर आने को कहने वाले पिता थे 

ना ठीक से रहना कहती अम्मा 

ना फिर आने को कहती भाभी  

ना पीठ थपथपाते  भईया 

था बस एक सूना द्वार

जर्जर होती जा रही दीवार से झड़ता पलास्तर

और जंग खाता चुप सा जंगला

आज जो फिर मैं सफर पर चला।।


मनीषा वर्मा


#गुफ़्तगू

6 comments:

  1. संयुक्त परिवार के बिना कहाँ मिलेंगी ऐसी नेमतें सौगातें...
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण ।

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  2. सच कहा धन्यवाद

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