सदियों से प्यासा था इसलिए
जमीं पर आग बो रहा है वो।
एक सूनी पगडंडी है उस तरफ
जहां से तूफान सा गुज़र रहा है वो।
सुनते नहीं हैं हुकुमरान हुंकार
इसलिए इतिहास लिख रहा है वो।
आसमां ने रची हैं कुछ ऐसी साजिशें
आज बारिशों को तरस रहा है वो ।
ईमान की बस बातें उसके हिस्से आई
अपने हक के लिए तरस रहा है वो ।
क्रांति महलों के रास्ते नहीं आती
इसलिए खेतों में उग रहा है वो।
मनीषा वर्मा
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