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Thursday, January 18, 2018

दिन जब लम्बे थे

दिन जब लम्बे थे और रातें छोटी
घड़ी के कांटों से बंधे हम ना थे

रात रात तक कहानी किस्से थे
इतने तन्हा तो हम ना थे

दिन की गलियाँ फिरते थे आवारा
दिल से इतने खाली तो हम ना थे

आंखो में उड़ाने थी कदमों में थिरकन थी
राह की उलझनों से वाकिफ तो हम ना थे

पतंगों के पेच थे चकरी और माँजे पर लड़ते थे
रिश्तों के इन पेचीदा भँवरों में उलझे तो हम ना थे



मनीषा वर्मा 

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