तुम्हारी देहरी तक जाते
ये पग मेरे हार जाते
बिन अधिकार कैसे आऊँगी
वो ड्योढ़ी न लाँघ पाऊँगी
तुम से जो प्यार मेरा है
ये लगाव अजब अलबेला है
कभी ना शब्दों में ढाल पाऊँगी
तुम को बिसार भी ना पाऊँगी
मनीषा
ये पग मेरे हार जाते
बिन अधिकार कैसे आऊँगी
वो ड्योढ़ी न लाँघ पाऊँगी
तुम से जो प्यार मेरा है
ये लगाव अजब अलबेला है
कभी ना शब्दों में ढाल पाऊँगी
तुम को बिसार भी ना पाऊँगी
मनीषा
No comments:
Post a Comment