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Friday, November 22, 2013

व्यवहार

कैसे बिसरा दूँ
जो थी आप बीती पुरानी
नए छोर को कैसे पकडूँ
कैसे लिखूँ  फिर से
रिश्तों की  पुन: कहानी
अश्रु भरे नयनों  से
बह चुका  जो विश्वास
फिर से कैसे ह्रदय में
बसा लूँ क्षण में
प्यार की थी
एक कोमल सी डोर
अब बिन गांठ कैसे उसे जोडूं
नही मिलता है
अब वो भोला विश्वास
अनुभव कि चिता पर
होम हुआ वह कोमल अहसास
अब लाऊं कहाँ से वो पहले सा प्यार विश्वास
जब चुक चुका सारा व्यवहार 

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