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Tuesday, December 9, 2025

कोई इस कदर रंजीदा नहीं होता।।

 कुछ तो मजबूरियां रही होंगी उसकी

यूं ही कोई इस कदर रंजीदा नहीं होता।।


गिला उसका भी ठीक ही था मुझसे 

मैं क्यों किसी बात पर संजीदा नहीं होता।।


ग़फ़लत में अधूरा रह गया इश्क़ का फ़साना,

हम समझते रहे, वो हमसे ख़फ़ा नहीं होता।।


जानकर दूरियाँ बढ़ा लीं होंगी उसने,

वरना यूँ ही तो वो जुदा नहीं होता।।


चेहरे से तबियत पहचान लेते अगर 

समझते, कोई अपना हो कर भी अपना नहीं होता।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू

Thursday, November 27, 2025

मेरी कूची के सब रंग फीके

 मेरी कूची के सब रंग फीके

मेरे गीतों के बोल अधूरे
हर क्षण हर पल मिलती खुशी अधूरी
तुम से ये कैसी जन्म जन्म की दूरी।।
कुछ कह पाती कुछ सुन पाती
काल के बंधन की यह कैसी मजबूरी
मन को मिलता ना कोई दिलासा
जीवन अब कोई ठौर ना पाता
तुम से ये कैसी जन्म जन्म की दूरी।।
धर्म ग्रंथ सब देते झूठा दिलासा
कहते है जन्म जन्म का नाता
नादान मन यह समझ ना पाता
दिन दिन कटता सूना सूना
रात मिट्टी मिट्टी हो जाती
मेरी हर मुस्कान रह जाती अधूरी
तुम से यह कैसी जन्म जन्म की दूरी।।
मनीषा वर्मा



वो एक पल था

 वो एक पल था

सभी दिनों से अधिक भारी
वक्त कुछ रुका रुका सा था
समय की गति थम सी गई थी
सांसों की लय टूट रही थी
जीवन की डोर छूट सी रही थी।।
बहुत लंबा दिन था
बहुत गहरी रात थी
ना मशीनों का शोर था
ना आसपास कोई हलचल
एक पूर्णविराम सा हो जैसे
लग रहा किसी कथा के अंत में ।।
वो एक पल बस पूरे जीवन पर
भारी है
समय वहीं आज भी रुका सा है
इन राहों पर मेरा साया जुदा सा है
मेरी कहानी का एक पन्ना कोरा सा है
कैसे इति श्री लिखूं जीवन के महाकाव्य पर
इसका एक सिरा अधूरा सा है।।
मनीषा वर्मा

तुम जब भी लिखना सतरंगी प्रीत लिखना।।

 वो लिख रहें है नफरतें तो लिखते रहें

तुम जब भी लिखना सतरंगी प्रीत लिखना।।
बहुत भारी है बोझ झूठे अंहकार का
तुम जब भी झुकना सादर नमन करना
रक्तिम स्याही से भी तुम सिर्फ धरा के गान लिखना
वो मिटा रहें है जो भी है यहां जीने लायक
तुम सदा शांति, अमन, प्रेम लिखना
उनके धमाकों के बीच प्राण वीणा की लय लिखना
बहुत आसान है उनसे बैर करना
तुम विवादों के बीच अपवाद लिखना
तुम जब भी लिखना सतरंगी प्रीत लिखना
मनीषा वर्मा

Thursday, November 13, 2025

हम थे क्या और क्या हो गए

 

हम थे क्या और क्या हो गए
इस बड़े से आसमां में खो गए।।

गिनते बैठे सिक्के  वक्त बेवक्त
इस  भरे बाजार में तन्हा हो गए।।

इतना रोए तेरे जाने के बाद
अब आंसू भी सूख कर ख़ाक हो गए।

बसा ली हैं इतनी दूर बस्तियां
अपने ही गली कूचे में सब गैर हो गए।।

ना था ना है कोई अपना खैरख्वाह
अपने आंगन के दरख़्त भी बाड़ हो गए।।

मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू