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Friday, May 24, 2024

तुमसे कितनी बातें हैं करनी

 अपने आप में तुमसे कितनी बातें करती हूं

फिर भी कितनी बातें रह जाती हैं तुमसे से कहनी

तुम्हारे जवाब मालूम हैं फिर भी कितना कुछ है कहना

चलती हूं रुकती हूं मन ही मन गुनती हूं

और धप से रोक लेती हूं जुबां से फिसलते शब्द।।


कितनी बार लिखीं तुम्हें छोटी छोटी पर्चियां 

कभी लिखूंगी एक लंबी सी चिट्ठी भी।।

लेकिन तब तक मेरे इन ख्यालों को तय करना है 

शब्दों के एक लंबे सेतू का सफ़र 

कुछ विराम कुछ प्रश्नचिन्ह और कुछ संबोधनों

में पिरोना है  इन्हे और सौंप देना है तुम्हे।।

विचारों का क्या! 

ये तो बेलगाम घोड़े से हैं एक आध छलांग में 

तुम तक पहुंच जाते हैं 

लेकिन जब शब्दों में इन्हें रोपूंगी ना,

तब तुम सुनना या पढ़ना 

मेरे प्रेम की अबूझी भाषा

जानना मुझे और विस्मय से आह्लादित हो जाना।।


तब तक मेरी चुप्पी पढ़ सको अगर  तुम

तो चांद को कह देना मेरी छत पर उतर आए।।


मनीषा वर्मा

#गुफ़्तगू

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना।
    शुभ इतवार 🌹

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  2. कोमल भावनाओं की फुहार ॥ समझ जाना॥ प्यारी कविता।

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  3. बहुत सुंदर सृजन

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