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Monday, February 26, 2024

जीवन घट

 इस जीवन घट के दर्पण में 

सिर्फ  तुम्हारा ही अक्स नज़र  आता है 

मेरे जीवनकी मरुस्थली में 

तुम 

एक वटवृक्ष से खड़े हो 

हर पल अपनी डालियों में समेटे 

प्यार कि छाया देते तुम 

जीवन मीत  का अहसास देते तुम 

खड़े हो 

गौर करती हूँ कभी तो लगता है 

इस जीवन सरिता का सागर तुम हो 

पर 

यात्रा अभी अधूरी है , 

मुझे अपने किनारों 

की तृषा मिटानी है 

औ' तुम्हे संसार में अमृत बरसाना है 

हम तय कर रहे हैं अपना अपना यह सफ़र 

इंतज़ार शायद लम्बा हो जाए 

हो सकता है सांझ हो जाए 

पर याद रखना 

हर रात सुबह का पैगाम होती है 

फिर सरिता को तो विलीन होना ही सागर में 

चाहे अमावस छ  जाए 

तुम इंतज़ार करना

 बहता पानी 

चट्टानों में भी  राह  खोज लेता है 

जानती हूँ तुम चाँद को देख कर बेसब्र हो जाओगे 

पर सुबह आने पर 

तुम्हारे चेहरे की धीर मुस्कान 

मेरे मन दर्पण में भी झलकेगी 

इस आसर संसार में 

वह  मूक मुस्कान 

जो तुम्हारी और मेरे आँखों में दमकेगी 

हमारे इस  मिलन का द्योतक होगी 

इसलिए साथी तुम इंतज़ार करना 

विश्वास करना 

मेरे आने का 

तुम में विलीन होने का 

तुम इंतज़ार करना 


मनीषा

5 comments:

  1. भावपूर्ण आग्रह।
    मर्मस्पर्शी रचना।
    सस्नेह।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २७ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. विचार को प्रेरित करती कविता

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