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Thursday, January 11, 2024

लड़की

 लड़की सहमी हुई है

उसने देखा है आसपास

मां से सुना है 

बाज़ार स्कूल दफ्तर

कहीं से भी से सीधे घर ही आना है

चुन्नी से छाती ढाप कर चलती है

तेल लगे बालों में 

कस कर बांध लेती है चोटियां

लेकिन जब वो हंसती है

तो मोती गिरते हैं

और उसकी हंसी उसकी 

आंखो में खिलती है।।

एक दिन किसी बात पर 

सहेलियों के बीच चलते चलते 

वो हंसी थी शायद 

और वो ही उसका दुर्भाग्य था 

अगले दिन से आने लगे थे 

मनचलों के फिकरे 

घर पर कैसे बताती

उसे पता था गलती उसकी है

शायद उसे बाहर नहीं जाना चाहिए 

सड़क पर यूं अकेले 

ऐसे में आया एक प्रणय निवेदन

उसे और डरा गया 

जनून था या वहशीपन

किसे कहे कैसे कहे 

दोषी तो वो खुद थी

क्या जरूरत थी ऐसे हंसने की।।

उसके इंकार ने 

अस्वीकार ने 

मन पर कितनी चोट की

प्रेम की पराकाष्ठा कुछ ऐसी हुई

उसका चेहरा एसिड से भिगो गई

अब उसके वीभत्स चेहरे पर 

मुस्कुराने के लिए होंठ नहीं हैं

आंखो तक कोई चमक नहीं आती

आंखे हीं अब नहीं हैं।

वो अब नियति को स्वीकार 

जीने के लिए विवश है 

न्याय के लिए सदा प्रतिक्षारत है

और 

उसका प्रेमी अब कहीं जरूर गर्व से भरा 

अट्टाहास लगा रहा है

कि तुम मेरी नहीं तो किसी की भी नहीं।

ऐसी प्रेम कहानियां लिखी नहीं जाती

सिर्फ जी जाती हैं बंद कमरों में

और बेमतलब के आंदोलनों में।।


मनीषा वर्मा 


#गुफ़्तगू

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