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Friday, June 30, 2023

मैं उलझनों सुलझनों में उलझी थी

 मैं उलझनों सुलझनों में उलझी थी

और जिंदगी बीत रही थी।।

कल पर कुहासा सा है

और कल अनजाना सा है ।।

पीछे आगे देखा जब नज़र उठा के

वक्त पाया बहुत थोड़ा सा है।

हाथों पर ना यादों का पुलिंदा है

ना उम्मीदों का बोझ कांधों पर ।।

सामने बस एक खालीपन सा है

जिसमे रंग भरती हूं और मिटाती हूं।

ये दिन भी और दिनों सा है

और मैं फिर उलझनों में उलझी रीत रही हूं धीरे धीरे ।।


मनीषा वर्मा

#गुफ़्तगू

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