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Monday, August 28, 2017

अच्छे दिन हैं भाई कहने दो

जनतंत्र है सब स्वतंत्र हैं
अच्छे दिन हैं भाई कहने दो

नोट जो रखे थे माँ ने कनस्तर में
हुए काले से गुलाबी रहने दो
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

सब्जी बेच रही जो माई
उसके घर में नहीं पकती रोटी ढाई
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

जी एस टी, सी एस टी ढो रही जनता
हो गया बाज़ार सस्ता कह रहे नेता
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

व्यापारी को मिलता नहीं नोट
रूपये का गिर गया मोल
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

डूब रहा पटना दरभंगा
जल रहा रोहतक  दिल्ली हरियाणा
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

लड़ रहा खाली पेट जवान
भूखा मर गया किसान 
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

एक एक सांस को तरसी जनता बेचारी
उठाई  अपनों की अर्थियां कंधो पर भारी
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

छूटे रोजगार, बंद हो रहे सब दफ्तर
होती नही कहीं कमाई खाली सब कनस्तर
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

 गिरता जा रहा रोज बाज़ार
 रूपया रोए ज़ार ज़ार
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

बांचते पोथी पत्री  हाकिम हजूर सब कहते 
नहीं है सिर्फ ज़िम्मेदारी हमारी 
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

कमीटियाँ बन गईं  ढेर सारी  
मर गई कब की आँख की शर्म सारी  
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

नौकर सेठ सब हुए कंगाल
साहिब कहते चल रहा अमृत काल 
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो

मनीषा वर्मा

#गुफ्तगू

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