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Sunday, April 24, 2016

मेरी व्यथा को अभी सोने दो

मेरी व्यथा को अभी सोने दो
छाई है अलसाई चाँदनी
मुझे मधु-मस्त रहने दो
जागा है भाव सागर
लहरों को अभी मचलने दो
कब कब आती है पूनो
अमा रही अब तक जीवन पर छाई
निकल आया है ये कैसे
भूले से आज उजास
ज़रा रंगोली सजोने दो
स्थिर जल में कम्पन
ज्वार उठा है तो जल चढ़ने दो
रंग जाए आज धरा
इतना रंग बिखरने दो
बांधो तोरण द्वार
दो ढोलक पर थाप
गा लो मंगल गान
नभ पर मेहंदी रचने दो
मेरी व्यथा को अभी सोने दो
मनीषा

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