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Monday, August 10, 2015

जिनकी नज़रों से देखी थी दुनिया

जिनकी नज़रों से देखी थी दुनिया कभी 
उन्ही को नज़रे चुराते देखा है 
जिनके कंधे पर रख सर रोया है ज़माना 
उन्ही को आंसू छिपाते देखा है 
जिनके दरवाज़े से ना लौटा था कोई हाथ खाली 
उन्ही से दुनिया को दामन बचाते देखा है 
जिन्होंने झेले है बदलते मौसमों को मुस्कुराते 
हमने तूफानों में उन्ही पुराने दरख्तों को 
लड़खड़ाते देखा है 
मनीषा

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