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Wednesday, June 3, 2015

शिकायत तो यही रही

शिकायत तो यही रही हमारे इस अफ़साने में 
हम आँखों से बोलते रहे वो हमारे लफ्ज़ सुनते रहे 
दिल टूटता रहा हर्फ़ दर हर्फ़ लब हमारे हँसते रहे 
वो पढ़ न सके हम कह न सके फासले यूं ही बढ़ते रहे 
मनीषा

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