तेरी यादों ने इस तरह बसा रखा है मुझमें इक शहर ।
कहीं भी जाऊं वीरानियाँ नसीब नहीं होती ।।
कहीं भी जाऊं वीरानियाँ नसीब नहीं होती ।।
महफ़िलों में फिरता रहता हूँ अजनबी सा ।
तन्हाइयों में भी तन्हाईयाँ नसीब नहीं होती ।।
तन्हाइयों में भी तन्हाईयाँ नसीब नहीं होती ।।
मनीषा वर्मा
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